जाने क्या है बवासीर(Piles) और इसके प्राकृतिक उपचार।
आइए जानते है क्या है बवासीर, और क्या है इसके उपचार:-
बवासीर को उर्दू में अर्श तथा अंग्रेजी में पाइल्स (Piles) कहते हैं। इसमें गुदा में खुजली तथा मल त्याग के समय जलन होती है। छूने पर गुदाद्वार पर छोटी या बड़ी गांठे महसूस होती हैं। जो मल त्याग के समय अवरोध उत्पन्न कर, काट देती हैं। ये गांठे जब मोटी हो जाती हैं तो मस्से का रूप ले लेती हैं। इस अवस्था को बादी बवासीर कहते हैं और जब ये मस्से कठोर मल की रगड़ से फटते हैं, तो रक्त स्राव हो जाता है। इस अवस्था को खूनी बवासीर कहते हैं। रोगी रक्ताल्पता (Anaemia) का शिकार हो जाता हैं। चेहरे की लालिमा खत्म हो जाती है, पेट भारी रहता है तथा रोगी उबासी लेता रहता है।
इसके क्या कारण होते है:-
यह रोग उन लोगों को अपनी गिरफ्त में कर लेता है जो मेहनत करने से जी चुराते हैं,आरामतलब होते हैं, जो तुला-भुना, मिर्च-मसाले, बासी तथा डिब्बा बंद भोजन करते हैं, और फल, सब्जी और सलाद से किनारे किनारा करते हैं, या महरूम हो जाते हैं। ऐसे लोगों की स्थिति रक्त वाहिनीयां रक्त को ऊपर धकेलने में अक्षम हो जाती है और रक्त की अधिकता के कारण फूल जाती है, और मल अवरोध पैदा करती हैं। यही रक्त वाहिनीयां, कुछ समय बाद मस्से का रूप ले लेती हैं। कब्ज के कारण रक्त मल इन्हीं मस्सों से रगड़ खाकर रक्त स्राव तथा असहनीय पीड़ा पैदा करता है।
इसके प्राकृतिक उपचार:-
1-पेट की हरे तेल से मालिश, गर्म-ठंडा सेक तथा पीली मिट्टी की पट्टी सप्ताह में 3 दिन।
2-गर्म पानी+नींबू रस का एनिमा अथवा नीम पानी का एनिमा सप्ताह में एक बार।
3-गर्म ठंडा कटि स्नान सप्ताह में 3 दिन।
4- संपूर्ण शरीर की मालिश तथा संपूर्ण वस्प स्नान(Steam bath) सप्ताह में एक 1 दिन।
5-Abdomen Cold Pack सप्ताह में 3 दिन।
6-प्रतिदिन सोते समय तथा प्रातः शौच के बाद गुदा में नीम का सुर्यतप्त हरा तेल लगाएं।
7-एक्सरसाइज, आसन और प्राणायाम जैसे सुबह शाम की सैर के साथ सामान्य व्यायाम। उसके साथ उत्तानपादासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, पश्चिमोत्तानासन, अनुलोम विलोम प्राणायाम, कपालभाती प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, मूलबंध अथवा अश्विनी क्रिया इस रोग में रामबाण क्रिया है।
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बवासीर को उर्दू में अर्श तथा अंग्रेजी में पाइल्स (Piles) कहते हैं। इसमें गुदा में खुजली तथा मल त्याग के समय जलन होती है। छूने पर गुदाद्वार पर छोटी या बड़ी गांठे महसूस होती हैं। जो मल त्याग के समय अवरोध उत्पन्न कर, काट देती हैं। ये गांठे जब मोटी हो जाती हैं तो मस्से का रूप ले लेती हैं। इस अवस्था को बादी बवासीर कहते हैं और जब ये मस्से कठोर मल की रगड़ से फटते हैं, तो रक्त स्राव हो जाता है। इस अवस्था को खूनी बवासीर कहते हैं। रोगी रक्ताल्पता (Anaemia) का शिकार हो जाता हैं। चेहरे की लालिमा खत्म हो जाती है, पेट भारी रहता है तथा रोगी उबासी लेता रहता है।
इसके क्या कारण होते है:-
यह रोग उन लोगों को अपनी गिरफ्त में कर लेता है जो मेहनत करने से जी चुराते हैं,आरामतलब होते हैं, जो तुला-भुना, मिर्च-मसाले, बासी तथा डिब्बा बंद भोजन करते हैं, और फल, सब्जी और सलाद से किनारे किनारा करते हैं, या महरूम हो जाते हैं। ऐसे लोगों की स्थिति रक्त वाहिनीयां रक्त को ऊपर धकेलने में अक्षम हो जाती है और रक्त की अधिकता के कारण फूल जाती है, और मल अवरोध पैदा करती हैं। यही रक्त वाहिनीयां, कुछ समय बाद मस्से का रूप ले लेती हैं। कब्ज के कारण रक्त मल इन्हीं मस्सों से रगड़ खाकर रक्त स्राव तथा असहनीय पीड़ा पैदा करता है।
इसके प्राकृतिक उपचार:-
1-पेट की हरे तेल से मालिश, गर्म-ठंडा सेक तथा पीली मिट्टी की पट्टी सप्ताह में 3 दिन।
2-गर्म पानी+नींबू रस का एनिमा अथवा नीम पानी का एनिमा सप्ताह में एक बार।
3-गर्म ठंडा कटि स्नान सप्ताह में 3 दिन।
4- संपूर्ण शरीर की मालिश तथा संपूर्ण वस्प स्नान(Steam bath) सप्ताह में एक 1 दिन।
5-Abdomen Cold Pack सप्ताह में 3 दिन।
6-प्रतिदिन सोते समय तथा प्रातः शौच के बाद गुदा में नीम का सुर्यतप्त हरा तेल लगाएं।
7-एक्सरसाइज, आसन और प्राणायाम जैसे सुबह शाम की सैर के साथ सामान्य व्यायाम। उसके साथ उत्तानपादासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, पश्चिमोत्तानासन, अनुलोम विलोम प्राणायाम, कपालभाती प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, मूलबंध अथवा अश्विनी क्रिया इस रोग में रामबाण क्रिया है।
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