गर्भावस्था के संकेत, लक्षण एवं सावधानियां।



गर्भावस्था के संकेत एवं लक्षण:-
सामान्यत: गर्भावस्था का ज्ञान दो से तीन मास के अंदर ही हो जाता है। किंतु किसी किसी स्त्री को उसी समय इसका का ज्ञान हो जाता है। गर्भ की स्थिति होने पर नारी के शरीर के अंदर अनेकों परिवर्तन प्रकट होने लगते हैं। इन लक्षणों का वर्णन इस प्रकार से है:-
1=सामान्यतः अधिक नींद एवं आलस्य आता है।
2=शरीर में भारीपन सा लगने लगता है।
3= संभोग की इच्छा नहीं होती शांति एवं संतोष की अनुभूति होती है।
4=स्तन में वृद्धि भारीपन व कालापन दिखाई देता है।
5=चार-पांच महीने में भ्रूण की गति का अनुभव होने लगता है।
6=मिचली आती है , सोकर उठने पर मुंह में पानी आता है।
7=अनायास व्याकुलता होने लगती है।
8= भूख कम एवं थकावट सी होती है।
9=पेशाब अधिक आता है चौथे मास के बाद भ्रूण के हृदय का शब्द सुनाई देने लगता है।
10=गर्भावस्था के ये लक्षण प्रायः 3 से 4 माह में प्रकट हो जाते हैं।


 सावधानियां क्या बरतनी चाहिए:-
 जब गर्भवती महिला के प्रसव पीड़ा के लक्षण दिखाई देने लगे, तो निम्न सावधानियां रखनी चाहिए:-
1= गर्भवती को आधा लीटर गर्म पानी में एक चाय का चम्मच सेंधा नमक मिलाकर एनिमा देना चाहिए।
2=यदि दर्द मंद मंद होता हो तो, समय की सुविधा हो गर्भवती को गर्म जल से नहलाकर ठंडी तौलिए से बदन को उसका शरीर को  सुखा देना चाहिए।
3= यदि स्नान किसी कारणवश ना कराया जा सके तो शरीर ताप का पानी लेकर जनइंद्रियों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।
4= इसके बाद गर्भवती को धीरे-धीरे आराम से टहलना चाहिए।
5=भूमि पर कोमल बिस्तर बिछा देना चाहिए और वह (गरभवती महिला) उस पर लेट जाएं।
6= प्रसव वेदना होने पर धीरे-धीरे बल लगाना चाहिए।
7=बाहर आते हुए गर्भ को रोकने से अधिक कष्ट होता है।
8= इसलिए पहले गर्भवती को सरल व्यायाम व हल्की मालिश करनी चाहिए जिससे प्रसव आसानी आसानी से हो।
9=इसके लिए अश्वासन, योग मुद्रा, वज्रासन, उष्ट्रासन, शवासन अति उपयोगी है, इसको करने से जैनिंद्रियो को बल मिलता है तथा प्रसव पीड़ा कम होकर प्रसव आसानी से होता है। तो यह था कि गर्भावस्था के क्या संकेत, लक्षण और क्या सावधानियां रखनी चाहिए।


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